कुछ लोग आपको बहुत कीमती समझेंगे और कुछ, आपकी वैल्यू को जीरो मानते हैं। आखिर ऐसा, होता क्यों है। एक आदमी ने, एक संत से पूछा- इतनी बड़ी दुनिया में मेरी क्या कीमत है?" संत मुसकराए और बोले- पहले मेरा एक काम करो। 'जाओ, इस पत्थर की कीमत पता करके आओ, लेकिन, इसे बेचना मत।'
वो आदमी उस पत्थर को लेकर, एक आमवाले के पास गया और बोला- 'इसकी कीमत क्या होगी?' पत्थर की चमक को देखकर, वो आमवाला बोला- " इसके बदले, मैं आपको, दस आम दे सकता हूँ।" वहां खड़ा, सब्जीवाला समझ गया, कि यह चमकदार पत्थर मामूली नहीं है, इसलिए बोला- 'मैं इसके बदले एक बोरी आलू दे सकता हूँ।' अब वो आदमी, एक जौहरी की दुकान पर गया। जौहरी पहचान गया कि यह रूबी पत्थर है। वो बोला, "पत्थर मुझे दे दो और मुझसे 50 हजार रुपए ले लो।" वो आदमी उठकर जाने ही लगा कि जोहरी बोला- "ये बेशकीमती पत्थर है, तुम जो कहोगे, मैं देने को राजी हूं।"
यह सुनकर वो आदमी हैरान हो गया। सीधा संत के पास पहुँचा और सारी बात सुना दी। तब वो संत मुस्कुरा कर बोले-" इस पत्थर की अहमियत, जिस आदमी को जितनी समझ आई, उसने इसकी उतनी कीमत लगाई। ठीक यही हमारे साथ है। फर्क सिर्फ इतना है कि हीरे को जोहरी तराशता है और आदमी को खुद, अपने आप को तराशना पड़ता है। अब तो आप समझ ही गए होंगे, कि दुनिया में हर कोई, अपनी पोटेंशियल और समझ के आधार पर ही, आपकी कीमत लगाएगा।